
सागर। वंदे भारत लाईव टीवी न्यूज रिपोर्टर सुशील द्विवेदी ,8225072664* व्यंग्य ऑफिस
ऑफिस नाम की जगह बड़ी ही अनोखी होती है। यहाँ इंसान अपनी कुर्सी पर तो रोज़ बैठता है, लेकिन सपने हमेशा प्रमोशन और छुट्टी के देखते हैं।
यहाँ बॉस भगवान से भी बड़े होते हैं—भगवान तो पूजा करने पर प्रसन्न हो जाएँ, पर बॉस को तो चापलूसी, चाय और “यस सर” की त्रिवेणी चाहिए।
मीटिंग्स का हाल यह है कि उसमें इतना समय बर्बाद होता है कि अगर वही वक्त काम में लगाया जाए तो शायद कंपनी का प्रॉफिट चार गुना हो जाए। लेकिन नहीं, मीटिंग ही असली काम है, काम तो खैर फुर्सत में होता है।
ऑफिस का सबसे बड़ा रहस्य है “टाइम पास करने की कला”। कोई नेट पर न्यूज़ पढ़ता है, कोई एक्सेल शीट खोलकर सोते-जागते सपनों की गिनती करता है। और जब बॉस आते हैं तो वही एक्सेल शीट अचानक “महत्वपूर्ण रिपोर्ट” बन जाती है।
सबसे ज्यादा एक्टिव चीज़ ऑफिस में वाई-फाई और गॉसिप ग्रुप होते हैं। एक मेल भेजने में तो सिस्टम लटक जाता है, लेकिन चाय की टपरी पर किसका अफेयर किससे चल रहा है, ये खबर वॉट्सऐप से भी तेज़ फैलती है।
कुल मिलाकर ऑफिस एक ऐसी प्रयोगशाला है, जहाँ इंसान हर रोज़ अपनी हंसी, गुस्सा, और सपनों को ओवरटाइम पर भेजकर तनख्वाह से संतोष करना सीख जाता है।